(Sunday Special)
आने वाले दिसंबर में हमारे जयपुर सम्मेलन में हम अभिनव राजस्थान पर एक पुस्तक जारी करेंगे. इस पुस्तक के प्रिंट और डिजिटल version जारी होंगे.
लगभग 300 पेज की इस पुस्तक में विस्तार से राजस्थान के हर क्षेत्र में हमारी योजनाओं का वर्णन होगा. राजस्थान बनने के बाद पहली बार राजस्थान के धरती पुत्र समृद्ध राजस्थान की कल्पना को व्यवहार रूप में देखेंगे, महसूस करेंगे- विशुद्ध स्थानीय नजरिये से.
मार्च 1949 में राजस्थान बनने के बाद कुछ वर्षों तक राजस्थान में स्थानीय नेताओं को थोड़ी बहुत सोचने और काम करने की आजादी थी पर तब भी दिल्ली के पार्टी नेताओं की छत्रछाया से वे बाहर नहीं निकल पाए थे. सुखाड़िया जी के जाने के बाद तो राजस्थान का मुख्यमंत्री राज्यपाल की ही तरह दिल्ली से नियुक्त किया जाने लगा और हम फिर दिल्ली के अधीन एक सूबा बनकर रह गए हैं. जैसे मुगलों या अंग्रेजों के ‘राज’ में थे. दिल्ली के आकाओं ने जिसे चाहा, वही यहाँ की सत्ता पर चिपक गया और उनके ईशारों पर नाचता रहा.
यही कारण रहा कि राजस्थान की समृद्धि को लेकर गंभीरता से काम नहीं हो पाया और हमारे संसाधनों को लूट लूटकर लोग ले जाते रहे. विशेषकर खनिज संसाधनों की भारी लूट हुई जो आज भी जारी है. वरना इतने चूने पत्थर, जिप्सम और सीमेंट के उत्पादन के बाद भी हम पिछड़े प्रदेश न होते. न ही आज इतने बड़े तेल और गैस भंडार के बावजूद हम पैस के लिए दिल्ली या विदेश की ओर ताकते. हमारा बाड़मेर-जैसलमेर-बीकानेर-नागौर का क्षेत्र कभी का कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात या कुवैत जैसा संपन्न क्षेत्र बन जाता. लेकिन हम गुलामों की तरह हमारे खनिज संसाधनों को लूटे जाने का खेल टक टकी लगाकर देख रहे हैं. हमें तो इस लूट के गणित का एक दो तीन भी नहीं पता. आम राजस्थानी को नहीं पता कि राजस्थान में oil refinery लगने को कौन रोककर बैठा है और क्यों !
यह भी देखने वाली बात है कि सात दशक के राजस्थान में कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं उभर सका. कोई powerful केन्द्रीय मंत्री नहीं बन सका. जिन बड़े नामों का कभी कभार जिक्र होता भी है तो वह थोथा महिमा मंडन ही है. असल में राष्ट्रीय पहचान या प्रभाव वाला कोई नायक इनमें नहीं था. हम स्थानीय जातिगत राजनीति में उलझे रहे.
आज भी इसी ‘महान’ काम में उलझे हुए हैं और इसपर लेख लिख रहे हैं ! वरना क्या आज देश भर के राजनेता राजस्थान में ‘राजनैतिक पर्यटन’ करने आते ? कि जिसका मन चाहा, यहाँ से लोकसभा या राज्यसभा का चुनाव लड़ लिया, मुख्यमंत्री बन लिए ? वरना क्या पंजाब, क्या हरियाणा, क्या उत्तरप्रदेश और क्या गुजरात हमारे पानी का हिस्सा दबाकर बैठ जाते ? कतई नहीं. वरना क्या आज राजस्थान के व्यापारी, उद्योगपति और कारीगर राजस्थान छोड़कर काम और पैसे की तलाश में भटकते ? कतई नहीं.
मित्रों, भारत का सबसे बड़ा प्रदेश राजस्थान, सबसे अधिक संसाधन सम्पन्न प्रदेश और सबसे अधिक संतुलित जलवायु वाला प्रदेश आज भी इस धरती पर एक समृद्ध क्षेत्र बनने का सपना दबाए बैठा है. यह समृद्धि उसका अधिकार है. अभिनव राजस्थान अभियान इसी अधिकार के लिए है.
लेकिन हम इस अधिकार को अपने दम पर प्राप्त करेंगे, किसी की कृपा से नहीं. कृपा करेगा भी कौन और क्यों, जब गुलामों की इतनी बड़ी फ़ौज ‘सेवा’ में लगी है !
पर ध्यान रहे कि हम इस अधिकार के लिए सकारात्मक पथ पर चलें, मजबूती से. घृणा, तुच्छ क्षेत्रवाद और धरने-प्रदर्शन-हिंसा से दूर रहें. हम अभिनव राजस्थान अभियान की शैली में ही स्व-शासन का यह अधिकार पायेंगे.
हम कागज-कलम-संगठन-बैठक-चर्चा-जनजागरण के दम पर यह काम करके दिखा देंगे.
हमारे जयपुर के दिसंबर सम्मेलन में पूरी कार्ययोजना राजस्थान के जनता और मीडिया के सामने रख दी जाएगी. स्पष्ट, बिना लाग लपेट के.
2020 में अभिनव राजस्थान के दर्शन हो जायेंगे. निश्चित है.
अभिनव राजस्थान के सुपर सदस्यों और शुभचिंतकों की आँखों में अभिनव राजस्थान उतर रहा है ! जल्द ही आमजन की आँखों में उतरेगा.
i m heartly attech with abhinav rajsghan