समाज हित – आदिकाल से ही समाज की प्राथमिक आवश्यकता रही है परन्तु एक ओर जहां समाज पग-पग पर हमारा मार्गदर्शक है, सम्बल है वहीं दूसरी ओर समाज की व्यवस्थाओं को काल व परिस्थितियों को दरकिनार करके पारम्परिक रूप से ढोने के फलस्वरूप किशान रूढियों के मकडझाल में फंसता हैा मनुष्य परम सत्ता का अंश है परन्तु जब तक उसका परिचय नही हो पाता तब तक हीन भावना से ग्रसित होकर अपने अहम के पोषण के लिये दिखावा करता है उसी दिखावे के प्रव़ति से आज मेडता के आस-पास का देहात व्यापक फिजुलखर्ची की समस्या से ग्रसित हैा आज किशान शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास के स्थान पर इस क्षेत्र के लोग तनाव की जिन्दगी जीने को मजबूर हैा ऐसी रूढियां व दिखावा जिनका किशान की मूलभूत आवश्यकताओं से दूर तक का रिश्ता नजर नही आता है फिर भी उसको पूरा करने के लिए जी जान से यहां के लोग पूर्ण करने में लगे रहते हैा ऐसे में इस विषय पर गम्भीर चिन्तन आज की महत्ती आवश्यकता हैा आध्यात्म की दष्टि से एक-एक किशान का जीवनकाल अत्यन्त महत्वपूर्ण है, बलदेवराम जी मिर्धा, नाथुराम जी मिर्धा आदि ने हमें रचनात्मक दिशा दी परन्तु रूढियों के मकडझाल व दिखावे की चका चौंध में चुंधियाया किशान आज सरजन के स्थान पर तनाव ग्रस्त जीवन जीने को विवश हैा आज रोटी, कपडा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, आध्यात्म, विज्ञान, आदि के बजाय अपनी पारम्परिक रूढियों के प्रति आज का किशान ज्यादा गंभीर हैा
समाज हित – आदिकाल से ही समाज की प्राथमिक आवश्यकता रही है परन्तु एक ओर जहां समाज पग-पग पर हमारा मार्गदर्शक है, सम्बल है वहीं दूसरी ओर समाज की व्यवस्थाओं को काल व परिस्थितियों को दरकिनार करके पारम्परिक रूप से ढोने के फलस्वरूप किशान रूढियों के मकडझाल में फंसता हैा मनुष्य परम सत्ता का अंश है परन्तु जब तक उसका परिचय नही हो पाता तब तक हीन भावना से ग्रसित होकर अपने अहम के पोषण के लिये दिखावा करता है उसी दिखावे के प्रव़ति से आज मेडता के आस-पास का देहात व्यापक फिजुलखर्ची की समस्या से ग्रसित हैा आज किशान शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास के स्थान पर इस क्षेत्र के लोग तनाव की जिन्दगी जीने को मजबूर हैा ऐसी रूढियां व दिखावा जिनका किशान की मूलभूत आवश्यकताओं से दूर तक का रिश्ता नजर नही आता है फिर भी उसको पूरा करने के लिए जी जान से यहां के लोग पूर्ण करने में लगे रहते हैा ऐसे में इस विषय पर गम्भीर चिन्तन आज की महत्ती आवश्यकता हैा आध्यात्म की दष्टि से एक-एक किशान का जीवनकाल अत्यन्त महत्वपूर्ण है, बलदेवराम जी मिर्धा, नाथुराम जी मिर्धा आदि ने हमें रचनात्मक दिशा दी परन्तु रूढियों के मकडझाल व दिखावे की चका चौंध में चुंधियाया किशान आज सरजन के स्थान पर तनाव ग्रस्त जीवन जीने को विवश हैा आज रोटी, कपडा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, आध्यात्म, विज्ञान, आदि के बजाय अपनी पारम्परिक रूढियों के प्रति आज का किशान ज्यादा गंभीर हैा